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कविता

प्रतिबिंब

सुमित पी.वी.


कभी भोर के पहले याम में
और कभी दोपहर के वक्त
और भी कभी रात के समय
उस चौड़े रास्ते पर वह
दिखाई देता था।

कुछ करते हुए नहीं
अपने आप को समझाते हुए
गाली देते हुए
हँसते-रोते...

कहीं वह आदमी
मेरा ही प्रतिबिंब तो नहीं?
आईना देखना होगा!!!


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